फरवरी में होंगी प्री-बोर्ड की परीक्षाएं, वाराणसी के डीआइओएस ने 20 जनवरी तक कोर्स पूरा कराने का दिया निर्देश
वाराणसी : यूपी बोर्ड के हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की परीक्षाएं मार्च-2023 में होने संभावना है। इस क्रम में सभी विद्यालयों को 20 जनवरी-2023 तक कोर्स पूरा कराने का निर्देश दिया गया ताकि फरवरी में प्री-बोर्ड की परीक्षाएं हो सके।यूपी बोर्ड वर्ष 2023 में होने वाली हाईस्कूल व इंटर की परीक्षा की तैयारी में अभी से जुटा हुआ है। परीक्षा केंद्र के लिए सभी विद्यालयों से उपलब्ध आधारभूत संसाधनों का विवरण वेबसाइट पर अपलोड करने का निर्देश दिया गया है। डीआइओएस स्तर से इसका सत्यापन भी पूर्ण हो चुका है। इस क्रम में डीआइओएस गिरीश कुमार सिंह ने सभी विद्यालयों से शैक्षणिक पंचांग के अनुसार समय से कोर्स पूरा कराने का निर्देश दिया है।
शैक्षिक पंचांग के अनुसार सभी विद्यालयों को कक्षा नौ से 12 तक का कोर्स 20 जनवरी तक पूर्ण करना है। प्री-बोर्ड की प्रयोगात्मक परीक्षा जनवरी के तृतीय सप्ताह में प्रस्तावित है। जबकि प्री-बोर्ड की लिखित परीक्षाएं एक फरवरी से 15 फरवरी तक कराने का निर्देश है। वहीं कक्षा नौ व 11 की वार्षिक परीक्षाएं सभी विद्यालयों को 28 फरवरी तक कराना अनिवार्य है।
चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम से रोकेंगे दाखिले में हेराफेरी
अब स्कूलों में दाखिले के लिए जन्म प्रमाणपत्र के साथ आधार नंबर भी अनिवार्य कर दिया गया है, जिन बच्चों का आधार कार्ड नहीं बना है। उनका आधार कार्ड विद्यालय स्तर से बनवाने का निर्देश है। दूसरी ओर विद्यालयों में फर्जी नामांकन रोकने व ड्राप आउट को चिन्हित करने के लिए चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम लागू करने की तैयारी फिर से चल रही है।
सरकारी, सहायता प्राप्त, निजी सहित इंटर तक के सभी विद्यालयों ट्रैकिग सिस्टम लागू होगा। करीब तीन साल पहले चाइल्ड ट्रैकिग सिस्टम लागू करने योजना बनाई गई थी। कोरोना महामारी व अन्य कारणों से यह सिस्टम लागू नहीं हो सका है। अब एक बार फिर इस सिस्टम को लागू करने की शुरू कर दी गई है। इसके तहत एक साफ्टवेयर तैयार किया गया है।
इस साफ्टवेयर के माध्यम से सभी बच्चों को एक यूनिक चाइल्ड कोड आवंटित किया जाएगा। साथ ही इसे आधार नवंबर से भी लिंक किया जाएगा। ऐसे में बच्चों का फर्जी नामांकन पर पूरी तरह से लगाम लगना तय है। वहीं किन्हीं कारणवश कोई बच्चा बीच में स्कूल छोड़कर दूसरे राज्य या स्कूल में दाखिला ले लेता है तो यूनिक चाइल्ड कोड के माध्यम से इसकी पहचान आसानी से कर ली जाएगी। ऐसे में ड्राप आउट बच्चों की पहचान करने में भी बेसिक शिक्षा विभाग को सहूलियत होगी।
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