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मंगलवार, 23 मई 2023

विवादित कुलपतियों को हटाने का कानून तक नहीं:निलंबन के बाद भी कुलपतियों को मिलता है पूरा वेतन, इसे रोकने का कानून ही नहीं



विवादित कुलपतियों को हटाने का कानून तक नहीं:निलंबन के बाद भी कुलपतियों को मिलता है पूरा वेतन, इसे रोकने का कानून ही नहीं


प्रदेश में विश्वविद्यालयों के अधिनियम और प्रदेश सरकार के नियम-कानून के तहत कुलपतियों को दिए गए विशेषाधिकार एक बार फिर चर्चा में हैं। कुलपतियों को इतनी छूट दे रखी है कि उनकी न हाजिरी दर्ज होती है और न ही निलंबनकाल में मुख्यालय निर्धारित होता है। इन विशेषाधिकारों के पीछे कई कुलपतियों की मनमानियां भी सामने आती रहती हैं। साल 2019 से पहले प्रदेश में विवादित कुलपतियों को हटाने का कानून तक नहीं था।


सरकार को किसी भी कुलपति को हटना होता था तो उसे छुट्‌टी पर भेज देती थी, ऐसे में वह कार्यकाल के शेष दिनों की पूरी तनख्वाह लेकर ही जाते थे। फिर सरकार ने 2019 में कुलपतियों को बर्खास्त कराने या निलंबित कराने का कानून बनाया, लेकिन तनख्वाह से संबंधित कानून में कोई बदलाव नहीं हुआ। इसका कई कुलपति आज भी दुरुपयोग कर रहे हैं। अब सुविवि के निलंबित कुलपति प्रो. अमेरिका सिंह का सैलेरी विवाद भी सीएमओ से लेकर राजभवन तक जा पहुंचा है।


गुरुकुल विवि फर्जीवाड़े मामले के बाद कुलपति प्रो. सिंह 21 मार्च 2022 को अवकाश पर चले गए थे। फिर राज्यपाल कलराज मिश्र ने प्रदेश सरकार की अनुशंसा पर उन्हें निलंबित कर दिया था। उनका कार्यकाल 21 जुलाई 23 तक है। अब उन्होंने सुविवि से पूरी सैलेरी की मांग कर दी है, जो 22.95 लाख रुपए बनती है।


रजिस्ट्रार सीआर देवासी ने प्रदेश के उच्च शिक्षा सचिव भवानी सिंह देथा को पत्र भेजकर पूछा कि कुलपति प्रो. सिंह को निलंबन काल की कितनी सैलेरी देनी है? इसकी वजह यह है कि सुविवि के अधिनियम में यह उल्लेख ही नहीं है कि कुलपति को निलंबन के दौरान कितनी तनख्वाह दी जाएगी? जबकि शैक्षणिक-अशैक्षणिक सभी कार्मिकों के लिए छह महीने तक 50 प्रतिशत सैलरी देने का नियम लागू है।


बाकी कर्मचारियों के लिए घटाकर आधी तक कर दी जाती है सैलेरी

सुविवि के अधिनियम 1964 में अधिकारी और कर्मचारियों को आधी सैलेरी देने के नियम हैं। कुलपति को आधी या पूरी पूरी सैलेरी देने का उल्लेख ही नहीं है। सुविवि सहित पूरे प्रदेश में कुलपतियों के लिए सर्विस रूल्स ही लागू नहीं हैं। ऐसे में इन्हें पूरी तनख्वाह देनी पड़ेगी। प्रो. अमेरिका सिंह को गुरुकुल विवि फर्जीवाड़े में निलंबित करने वाली प्रदेश सरकार आरोप सिद्ध नहीं कर पाई है। अब उन्हें क्लीन चिट देने की पूरी तैयारी हो चुकी है। ऐसे में वे हाईकोर्ट जाकर पूरी तनख्वाह ले सकते हैं। उनकी प्रतिमाह 2.55 लाख सैलेरी है, लेकिन 1.20 लाख रुपए उन्हें पहले से मिल रही पेंशन के रूप में कट जाते हैं। ऐसे में हर माह 1.35 लाख रुपए तनख्वाह मिलती है। जो 21 मार्च 2022 से लेकर 21 जुलाई 23 में कार्यकाल पूरा होने तक 22.95 लाख रुपए बनती है।


1977 में प्रो. लांबा तो 2020 में प्रो. सिंह ने हटने के बाद भी उठाई पूरी तनख्वाह

सुविवि के कार्यवाहक कुलपति प्रो. आईवी त्रिवेदी बताते हैं कि 1973 में प्रो. पीएस लांबा को साल उदयपुर विवि (जब सुविवि से एमपीयूएटी अलग नहीं हुआ था) का चार साल के लिए कुलपति बनाया गया था। साल 1977 में प्रदेश सरकार प्रो. लांबा को कुलपति पद से हटाने के लिए अड़ गई थी। लांबा ने कहा- पद तभी छोडूंगा जब पूरी सैलेरी लूंगा। ऐसे में प्रदेश सरकार को प्रो. लांबा को एक साल की पूरी सैलेरी बतौर अवकाश एडवांस में देनी पड़ी थी।


महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय अजमेर के कुलपति प्रो. आरपी सिंह को सितंबर 2020 में एसीबी ने गिरफ्तार किया था। उनके गार्ड को कॉलेज संचालक से 2.40 की रिश्वत लेते पकड़ा गया था। इसके बाद राजभवन ने उन्हें निलंबित कर दिया था। इसके बावजूद सरकार को उन्हें पूरी तनख्वाह देनी पड़ी थी। क्योंकि नियम-कायदे ंनहीं होने की वजह से न्यायपालिका भी कुछ नहीं कर पाती है।


बड़ा सवाल

जब आईएएस-आईपीएस को पूरा वेतन नहीं तो कुलपतियों को क्यों?

शिक्षाविद् प्रो. अरुण चतुर्वेदी बताते हैं कि देश में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) जैसी अहम सेवाओं के अफसरों के लिए भी उपस्थिति दर्ज कराने के नियम कई दशकों से लागू हैं। इन अधिकारियों के निलंबन के दौरान उनकी उपस्थिति के लिए मुख्यालय निर्धारित किया जाता है। निलंबन के दौरान अधिकारियों को 6 माह तक अ‌ाधी तनख्वाह दी जाती है। इसके बाद निर्वहन भत्ता देना सरकार के विवेक पर निर्भर करता है। सरकार की अनुमति पर 6 माह बाद 75 प्रतिशत तनख्वाह देने का प्रावधान है। यही नहीं, कुलपति बनने से पहले प्रोफेसर पर भी यही नियम लागू होते हैं, लेकिन कुलपति बनते ही उन्हें विशेषाधिकार दे दिए जाते हैं।

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