सम्राट पृथ्वीराज को बोर्ड की मूल किताबों में जगह नहीं; राजस्थान का इतिहास एवं संस्कृति में मात्र एक पैराग्राफ पढ़ रहे स्टूडेंट्स
एनसीईआरटी की किताबों में मुगल और अन्य आक्रांताओं को नहीं पढ़ाना समझ में आता है, लेकिन महान हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान को भी इतिहास की किताबों में जगह नहीं मिली है। सीएम अशोक गहलोत ने चार साल पहले राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में एनसीईआरटी का कोर्स ही लागू किया था। इससे पहले राजस्थान सरकार के कोर्स में 12वीं की इतिहास की पुस्तक में पृथ्वी राज चौहान को लेकर अध्याय शामिल था।
बोर्ड ने इतना जरूर किया है कि सामान्य अध्ययन की कक्षा 10वीं की राजस्थान का इतिहास एवं संस्कृति नामक पुस्तक में एक पैराग्राफ में जरूर पृथ्वीराज चौहान को जगह दे रखी है। बोर्ड की इतिहास की मुख्य किताबों में सम्राट पृथ्वीराज चौहान से संबंधित कोई अध्याय नहीं है। बोर्ड की कक्षा 9वीं से 12वीं तक की सभी कक्षाओं में इस समय एनसीईआरटी की किताबें पढ़ाई जा रही हैं। राज्य सरकार का अपना कोई पाठ्यक्रम नहीं है।
एनसीईआरटी की पुस्तकों में पृथ्वीराज चौहान से संबंधित पाठ नहीं होने पर बोर्ड ने एक रास्ता यह निकाला कि 9वीं से 12वीं तक की कक्षाओं के लिए सामान्य ज्ञान एवं अध्ययन के हिसाब से अलग-अलग कक्षाओं की अलग-अलग चार पुस्तकें तैयार कराईं। इनमें कक्षा 9वीं की पुस्तक का नाम राजस्थान का स्वतंत्रता आंदोलन एवं शौर्य परंपरा, कक्षा 10वीं की राजस्थान का इतिहास व संस्कृति, कक्षा 11वीं की आजादी के बाद का स्वर्णिम भारत भाग 1 और कक्षा 12वीं में आजादी के बाद का स्वर्णिम भारत भाग-2 शामिल हैं। शेष | पेज 11
एनसीईआरटी की पुस्तकों में नहीं मिला स्थान
पिछले करीब 4 साल से प्रदेश में एनसीईआरटी की किताबें बोर्ड की कक्षाओं में चल रही हैं। इन किताबों की पाठ्य सामग्री राजस्थान सरकार तैयार नहीं करती। इन किताबों में पृथ्वीराज चौहान से संबंधित कोई पाठ नहीं है। विशेषज्ञ अब एनसीईआरटी की पुस्तकों में भी सम्राट पृथ्वीराज चौहान जैसे वीर योद्धाओं को पाठ्यक्रम में विशेष स्थान मिलने की वकालत कर रहे हैं।
पृथ्वीराज चौहान पर एक पैराग्राफ
वर्तमान में कक्षा 10 में सामान्य ज्ञान व अध्ययन की चल रही राजस्थान का इतिहास व संस्कृति नामक पुस्तक में सम्राट पृथ्वीराज चौहान व अन्य वीर योद्धा का संक्षिप्त विवरण दिया है। लेकिन इस विषय के नंबर मूल्यांकन के लिए नहीं जोड़े जाते हैं। ऐसे में यह केवल नाममात्र के लिए ही पैराग्राफ जुड़ा हुआ है। परीक्षार्थी भी इसे गंभीरता से नहीं लेते। इतिहास की मुख्य पाठ्य पुस्तकों में कोई अध्याय नहीं है।
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