Sachin Pilot RPSC : सचिन पायलट हो या किरोड़ीलाल मीणा, सबके निशाने पर क्यों है RPSC अजमेर, 12 बड़ी वजहें
Sachin Pilot - RPSC : राजस्थान में कई आंदोलन और परिवर्तनों का अखाड़ा अजमेर रहा है. अब एक बार फिर से अजमेर सुर्खियों में है वजह है राजस्थान लोक सेवा आयोग. भाजपा नेता और राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा के निशाने पर लगातार रहने के बाद अब आरपीएससी राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के निशाने पर है. साल दर साल कई पेपर लीक होने के बाद अब सचिन पायलट ने आरपीएससी को भंग करने की बड़ी मांग कर दी है. साथ ही उन्होंने इसके लिए राजस्थान के अशोक गहलोत सरकार को 15 दिन का अल्टीमेटम भी दिया है, चलिए जानते हैं कि आखिर आरपीएससी नेताओं के इतने निशाने पर क्यों हैं.
पायलट ने की भंग करने की मांग
दरअसल आरपीएससी का मसला उठाकर सचिन पायलट ने अब इसे एक बड़ा सियासी मुद्दा बना दिया है. लिहाजा ऐसे में माना जा रहा है कि आगामी दिनों में होने वाले विधानसभा चुनाव में आरपीएससी एक बड़ा मुद्दा हो सकता है. जयपुर में जन संघर्ष यात्रा के समापन समारोह में सचिन पायलट ने कहा कि आरपीएससी के चेयरमैन और सदस्यों की नियुक्तियों का कोई प्रावधान नहीं है. सरकार के मुखिया अपने नजदीकी नेताओं और अफसरों के साथ चुनावी फायदे को देखते हुए नेताओं के रिश्तेदारों की नियुक्ति आरपीएससी में कर देते हैं. जिसके चलते लगातार पेपर लीक हो रहे हैं लिहाजा ऐसे में सचिन पायलट ने आरपीएससी को भंग कर एक नई व्यवस्था लागू करने की मांग की है.
कटघरे में विश्वसनीयता
राजस्थान के कई विभागों में राजस्थान लोक सेवा आयोग के जरिए ही भर्ती की जाती है. लेकिन अब आरपीएससी की विश्वसनीयता कटघरे के घेरे में हैं, लेकिन यहां पेपर लीक का इतिहास भी उतना ही पुराना है. साल 2013 में आरपीएससी के तत्कालीन अध्यक्ष हबीब गौरांग पर आरजेएस भर्ती परीक्षा का पेपर लीक करने का आरोप लगा था. आरोप था कि उन्होंने पेपर लीक कर अपनी बेटी को पेपर दिया था, जिसके बाद इस मामले में उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी. वहीं इसके बाद साल 2018 के इंटरव्यू के दौरान आरपीएस सदस्य राजकुमारी गुर्जर पर रुपए लेकर पेपर देने का आरोप लगा था. इस तरह के कई उदाहरण लगातार वक्त के साथ सामने आते रहे हैं, लिहाजा ऐसे में आरपीएससी की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में हैं.
सचिन पायलट ने मांग की है कि आरपीएससी को बंद करके एक नई व्यवस्था लागू की जानी चाहिए. एक ऐसी व्यवस्था का गठन होना चाहिए जिसके अंदर नियुक्तियों को लेकर मापदंड तय हो, संस्थान के अध्यक्ष और सदस्यों की शैक्षणिक योग्यता निर्धारित की जाए. साथ ही जिस तरह से हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति के दौरान इंटेलिजेंस ब्यूरो की ओर से जांच की जाती है. उसी तरह से सदस्य और अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए भी पूरा वेरीफाई किया जाए, ताकि इस तरह के महत्वपूर्ण पदों पर रहने वाले व्यक्ति इस तरह के मामलों में लिप्त न पाए जाए.
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