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सोमवार, 19 जून 2023

100 Years history of Geeta Press: किराए के कमरे से धार्मिक पुस्‍तकों का तीर्थ बनने तक, जानें कैसा रहा गीता प्रेस का 100 सालों का सफर



100 Years history of Geeta Press: किराए के कमरे से धार्मिक पुस्‍तकों का तीर्थ बनने तक, जानें कैसा रहा गीता प्रेस का 100 सालों का सफर 


प्रतिष्ठित गांधी शांति पुरस्कार-2021 पाने वाला गीता प्रेस सौ साल से सनातन संस्कृति का संवाहक है। इसकी ख्याति सनातन संस्कृति और धार्मिक पुस्तकों के तीर्थ के रूप में भी है। किराए के एक छोटे से कमरे और तीन मशीनों के साथ शुरू हुआ गीता प्रेस के इस मुकाम तक पहुंचने की कहानी अथक परिश्रम और लगन के साथ ईमानदारी और परोपकार की भावना से भरी हुई है। आज यहां गीता प्रेस में उन्‍नत और जटिल तकनीक से काम होता है लेकिन परम्‍परा अभी भी वही पुरानी है।


तभी तो गांधी शांति पुरस्‍कार मिलने के बाद प्रेस के बोर्ड ने बड़ी विनम्रता से कहा है कि वो सम्‍मान तो स्‍वीकार करेगा लेकिन इसके साथ मिलने वाली एक करोड़ की धनराशि नहीं लेगा। गांधी शांति पुरस्कार को प्रबंधन से जुड़े लोगों ने सनातन संस्कृति का सम्मान बताया तो वहीं सीएम योगी आदित्यनाथ ने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार जताया है। वर्ष 1923 में स्थापित गीता प्रेस सनातन धर्म की पुस्तकों का सबसे बड़ा प्रकाशक है। स्वतंत्रता संग्राम के संघर्षों का साक्षी गीता प्रेस कोरोना काल में भी पूरी शिद्दत से धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन करता रहा। प्रेस के 100 वर्षों के सफर में श्रीमद्भगवद गीता और श्रीरामचरित मानस सहित करीब 1800 तरह की पुस्तकों की 92 करोड़ से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं।


प्रतिदिन 70 हजार प्रतियों का प्रकाशन 

ट्रस्टी लालमणि बताते हैं कि गीता प्रेस में एक दिन में औसतन 70 हजार प्रतियों का प्रकाशन होता है। पिछले साल गीता प्रेस ने 111 करोड़ कीमत की पुस्तकों की बिक्री की है। गीता प्रेस ने श्रीमद्भगवद् गीता की 16.21 करोड़ प्रतियां, श्रीरामचरितमानस की 11.73 करोड़ प्रतियां प्रकाशित की हैं। प्रेस ने अपनी वेबसाइट पर 500 से ज्यादा ई-पुस्तकें भी अपलोड की हैं।


राजेन्द्र प्रसाद ने किया था प्रवेश द्वार का उद्घाटन 

गीता प्रेस का प्रवेश द्वार प्रतीकात्मक गीता द्वार का स्वरूप है, जिसका उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने 29 अप्रैल 1955 को किया था। गीता द्वार के निर्माण में देश की प्राचीन कला और प्राचीन स्थापत्य शैली नजर आती है।


हनुमान प्रसाद पोद्दार ने दी गीता प्रेस को उड़ान

संस्थापक गीता-मर्मज्ञ जयदयाल गोयनका थे। लेकिन हनुमान प्रसाद पोद्दार भाई जी ने गीता प्रेस को उड़ान दी। ‘कल्याणह्ण मासिक पत्र के संपादक के रूप में भाई जी का पत्रकारिता के क्षेत्र में विशेष स्थान है। कल्याण के लिए उन्होंने महात्मा गांधी से भी लेख लिखवाए। गांधी जी की सलाह पर ही बाजार के दबाव से बचे रहने के लिए गीता प्रेस ने कभी अपनी पुस्तकों में विज्ञापन नहीं प्रकाशित किया। लागत मूल्य पर पुस्तक उपलब्ध कराना ही ध्येय है।


समाज सुधार को दी आवाज

1923 में मारवाड़ी व्यवसायी से अध्यात्मवादी बने जयदयाल गोयंदका और सह-संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार के प्रयास के रूप में गीता प्रेस की शुरुआत हुई। गीता प्रेस की पुस्तकों ने विधवा पुनर्विवाह, सती प्रतिबंध और ब्रह्म आंदोलन में भी अमिट छाप छोड़ी।


ऐसी दूसरी कोई संस्‍था नहीं 

साहित्‍य अकादमी के पूर्व अध्‍यक्ष और दस्‍तावेज पत्रिका के संपादक प्रो.विश्‍वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि गीता प्रेस प्राचीन भारतीय धर्म संस्कृति एवं दर्शन को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाने वाली संस्था है। भारतीयता एवं भारतीय संस्कृति का इतना व्यापक प्रचार करने वाली कोई दूसरी संस्था नहीं है। गीता प्रेस को केवल हिन्दू या सनातन धर्म तक सीमित करना उचित नहीं है क्योंकि हिन्दू धर्म एवं संस्कृति द्वारा जो संदेश दिया गया है वह पूरे विश्व के लिए उपयोगी है।


प्रथम राष्‍ट्रपति के प्रपौत्र ने जताई खुशी

देश के पहले राष्‍ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद के प्रपौत्र अशोक प्रसाद ने कहा कि गीता प्रेस, को साल 2021 का गांधी शांति पुरस्कार मिलना हम सब के लिए गौरव की बात है। गीता प्रेस भारत की अध्यात्मिक यात्रा को न केवल आगे बढ़ा रही हैं बल्कि विश्व को अपनी पुस्तकों के जरिए शांति का संदेश दे रही है। वर्तमान में हमारा जोर परम्पराओं पर है लेकिन हमें मूल दर्शन को समझने की कोशिश करनी चाहिए। आज स्वयं को सनातनी कहने वाले सनातन के मूल दर्शन को कितना समझ पाते हैं। 


मुख्‍य ट्रस्‍टी बोले 

गीता प्रेस के मुख्‍य ट्रस्‍टी देवीदयाल ने कहा कि यह गौरव का विषय है। इस पुरस्कार के लिए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को हृदय से धन्यवाद। भगवान हमको और शक्ति प्रदान करें ताकि जो कार्य हम कर रहे हैं। उसे और उत्साह पूर्वक आगे बढ़ा सकें। गीता प्रेस प्रशासन बिना लाभ के लोगों तक धार्मिक पुस्तकों को पहुंचा रहा है। कोविड काल में भी हमनें पूरी निष्ठा से पुस्तकों का प्रशासन किया। समय के साथ हो रहे बदलावों के हम संवाहक बन रहे हैं।

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