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बुधवार, 21 जून 2023

स्कूलों में नामांकन बढ़ाने के प्रयास चढ़े लेटलतीफी की भेंट



 स्कूलों में नामांकन बढ़ाने के प्रयास चढ़े लेटलतीफी की भेंट

                                                                                                                           लेखक-आशीष जोशी

शिक्षा विभाग की योजनाएं अच्छी भले ही हों लेकिन इनका लचर क्रियान्वयन ही सबसे बड़ी बाधा है प्रदेश के सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ाने के मकसद से दर्जनों योजनाएं संचालित की जा रही हैं। सरकार का दावा है कि नि:शुल्क यूनिफॉर्म व पाठ्यपुस्तकों से लेकर पोषाहार में दूध वितरण तक के जो उपाय किए जा रहे हैं उनसे नामांकन बढ़ा है। पर हकीकत यह है कि हर बार सत्र शुरू होते ही शिक्षा विभाग को नामांकन बढ़ाने के लिए प्रवेशोत्सव का ढोल पीटना पड़ता है। बच्चे किसी न किसी तरह से एक बार स्कूल में नाम दर्ज करा लें, बस इतना ही जतन होता है। इस बात की परवाह किसी को नहीं कि जिन सुविधाओं का सरकार बखान करती रहती है वे पूरी और समय पर मिल भी रही हैं या नहीं।


कोरोनाकाल के बाद से ही प्रदेश के सरकारी स्कूलों में नामांकन का आंकड़ा एक करोड़ छूने की बातें की जा रही थीं पर अभी तक इस लक्ष्य तक नहीं पहुंचा जा सका है। प्रतिभावान छात्राओं को साइकिल वितरण की योजना हो या फिर मेधावी विद्यार्थियों को लैपटॉप देने की, पात्र बालक-बालिकाओं के लिए तो इंतजार की इंतहा ही हो रही है। हालत यह है कि पिछले चार साल से लैपटॉप और दो सत्रों से साइकिलों का वितरण नहीं हुआ है। हजारों बेटियां साइकिल की राह देख रही हैं तो बोर्ड परीक्षाओं में उत्कृष्ट परिणाम देने वाले मेधावी विद्यार्थी चार साल से लैपटॉप का इंतजार कर रहे हैं। पिछले चार सत्रों के करीब एक लाख विद्यार्थियों को लैपटॉप मिलना है। विद्यार्थी, अभिभावक और शिक्षक संघ सभी लैपटॉप वितरण की मांग उठा रहे हैं।


कहा तो यह भी जा रहा है कि कोरोनाकाल में जब ऑनलाइन शिक्षण कराया जा रहा था तब यदि इनका वितरण हो जाता तो मेधावी विद्यार्थियों को इसका फायदा मिल सकता था। नि:शुल्क यूनिफॉर्म योजना भी डेढ़ साल बाद मूर्त रूप ले पाई। बच्चों ने एक सत्र तो बिना यूनिफॉर्म के ही निकाल दिया। दूध वितरण का भी यही हाल रहा। पाउडर वाला दूध महीनों पहले स्कूलों में पहुंच गया, पर वितरण की औपचारिक शुरुआत के नाम पर देरी की गई। सालों से देखा जा रहा है कि पाठ्यक्रम की निशुल्क पुस्तकें भी सत्र शुरू होने के महीनों बाद बच्चों को नसीब होती हैं। सरकारी विद्यालयों में नामांकन बढ़ाना कोई बेहद चुनौतीपूर्ण काम नहीं है। योजनाएं अच्छी और आर्थिक कमजोर परिवारों के बच्चों को प्रोत्साहित करने वाली भी हैं। बस, क्रियान्वयन ही लचर है। सरकार को योजनाओं के समय प्रबंधन पर ध्यान देना होगा। 

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