ओपीएस: भाजपा के लिए गले की फांस, कांग्रेस के लिए आस,सियासत एक तरफ देश की आर्थिक सेहत, दूसरी ओर वोटों का सवाल
नई दिल्ली. दल से बड़ा देश का नारा देने वाली सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) के मामले में सरकार की आर्थिक सेहत और करीब पांच करोड़ वोटों के बीच द्वंद्व के दलदल में फंस गई है। पहले तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव व अगले साल लोकसभा चुनाव में ओपीएस के मुद्दे पर भाजपा को कर्मचारी वर्ग के वोटों की चिंता है जबकि विपक्ष एक के बाद एक राज्यों में ओपीएस लागू करने का वादा कर चुनावी लाभ ले रहा है।
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने पिछले दिनों जबलपुर में घोषणा की कि मध्य प्रदेश में सरकार बनने पर ओपीएस लागू की जाएगी। भाजपा नेताओं के पास फिलहाल इसका तोड़ नजर नहीं आ रहा। माना जा रहा है कि सामाजिक सुरक्षा के नाम पर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस लोकसभा चुनाव 2024 में देश में पुन: ओपीएस लागू करने का वादा कर सकती है। हालांकि रिजर्व बैंक और अर्थशास्त्री ओपीएस पर लौटने को अर्थव्यवस्था और भविष्य की पीढ़ियों पर भारी बोझ मानते हैं। >
सरकार और भाजपा खोज रही रास्ता
ओपीएस के मुद्दे पर भाजपा बचने का रास्ता खोज रही है कि राज्य व केंद्र सरकारों की आर्थिक सेहत को ज्यादा नुकसान पहुंचाए बिना न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) को ही आकर्षक व गारंटीशुदा बनाने का विकल्प अपनाया जाए। इसके तहत केंद्र सरकार ने एनपीएस में सुधार के लिए वित्त सचिव टी.वी. सोमनाथन की अध्यक्षता में कमेटी गठित की है। कर्मचारियों के आंदोलन के बाद महाराष्ट्र की शिवसेना-भाजपा सरकार ने भी एनपीएस में गारंटीशुदा पेंशन पर विचार के लिए समिति का गठन किया है। विधानसभा चुनाव में हार से पहले कर्नाटक की भाजपा सरकार ने ओपीएस लागू करने पर विचार के लिए समिति का गठन किया था लेकिन इसका लाभ नहीं हुआ और भाजपा सत्ता से बाहर हो गई।
सामाजिक सुरक्षा का हवाला
देश की अर्थव्यवस्था की चिंता करते हुए कांग्रेसनीत यूपीए सरकार में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने कहा था कि पैसे पेड़ पर नहीं लगते, लेकिन अब सामाजिक सुरक्षा के नाम कांग्रेस सरकारों की आर्थिक सेहत को दरकिनार कर शासित राज्यों में ओपीएस लागू कर रही है। राजस्थान में गहलोत सरकार ने इसे सबसे पहले लागू किया। बाद में छत्तीसगढ़ व हिमाचल प्रदेश में लागू किया गया।
अंदर चिंता, बाहर पार्टी लाइन
केंद्रीय स्तर पर भाजपा ने ओपीएस मामले में खुलकर अपना रुख जाहिर नहीं किया है लेकिन राज्यों में पार्टी के नेता अंदरखाने ओपीएस मुद्दे पर चुनावी नुकसान होने की आशंका से चिंतित हैं। हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर कह चुके हैं ओपीएस के कारण पार्टी चुनाव हारी। राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में भाजपा नेता पार्टी लाइन पर चलते हुए कहते हैं कि यह एक राज्य का मसला नहीं है, पेंशन सिस्टम पर केंद्र सरकार ने कमेटी बनाई है लेकिन निजी बातचीत में स्वीकार करते हैं कि एनपीएस को गारंटीशुदा जरूर बनाया जाना चाहिए। ओपीएस मामले का कोई तोड़ नहीं निकला तो चुनाव में नुकसान होगा।
यह सबसे बड़ी रेवड़ी
ओल्ड पेंशन स्कीम राज्यों के आर्थिक भविष्य के लिए घातक है, यह सबसे बडी रेवडी है। - मोंटेक सिंह अहलूवालिया, अर्थशास्त्री
पेड़ पर पैसे नहीं ... से सामाजिक सुरक्षा तक
देश की अर्थव्यवस्था की चिंता करते हुए कांग्रेसनीत यूपीए सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि पैसे पेड़ पर नहीं लगते, लेकिन अब सामाजिक सुरक्षा के नाम कांग्रेस सरकारों की आर्थिक सेहत को दरकिनार कर अपने शासित राज्यों में ओपीएस लागू कर रही है। राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार ने इसे सबसे पहले लागू किया और बाद में छत्तीसगढ़ व हिमाचल प्रदेश में लागू किया गया।
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