डकैतों के लिए बदनाम था ये गांव:20 लोग आतंक का दूसरा नाम थे; अब तस्वीर बदली, स्कूल में लड़कों से ज्यादा संख्या बेटियों की
चंबल किनारे धौलपुर के बीहड़ कभी आतंक का पर्याय थे, अब वहां बेटियां बदलाव ला रही हैं। धौलपुर के बाड़ी उपखंड स्थित कुदिन्ना गांव ने कई दशक तक सिर्फ बंदूकों की गूंज सुनी, पुलिस और डकैतों के बीच मुठभेड़ की कहानियां पढ़ीं। यहीं की बेटियां अब स्कूल में ऊंची आवाज में ककहरे का उच्चारण कर रही हैं। जगन गुर्जर, केशव गुर्जर, हरिया व रमेश।
ये सभी डकैत इसी गांव से निकले। जिनकी गैंग राजस्थान, यूपी व एमपी के बीहड़ों में आतंक का पर्याय थी। गांव के कभी 20 से ज्यादा युवा इसी राह पर थे। अब सभी सलाखों के पीछे हैं। अब यहां की बेटियां वर्षा, किरण, सपना 12वीं पास कर चुकी हैं। कोमेश पिछले साल 11वीं में थी और पूजा इस साल 11वीं क्लास में है। इन्हीं बेटियों के दम पर अब गांव की एकमात्र सीनियर सैकंडरी स्कूल में उनकी संख्या बेटों से ज्यादा है।
अब तक सिर्फ तीन युवा सरकारी नौकरी तक पहुंचे
डकैतों का गांव होने का नतीजा है कि अब तक यहां से सिर्फ तीन युवा सरकारी नौकरी तक पहुंच पाए। सतीश गुर्जर जूनियर इंजीनियर, राम पूजन सेना में तो नरेश गुर्जर सैकंड ग्रेड टीचर बने, अब लेक्चरर की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि हमें देख पढ़ाई के प्रति रुचि बढ़ी है। प्रधानाध्यापक अरविंद तिवारी बताते हैं कि यहां पढ़ चुके बच्चे अब प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगे हैं।
7-8 किमी दूर से पैदल पढ़ने आते हैं बच्चे, साधन नहीं
गांव के बुजुर्ग निहाल सिंह बताते हैं कि बच्चे 7-8 किमी दूर से पैदल चलकर पढ़ने आते हैं। सरकार ट्रांसपोर्टेशन शुल्क दे रही है, लेकिन साधन नहीं है। बच्चियों के लौटकर आने तक चिंता लगी रहती है। स्कूल में ज्यादा विद्यार्थी 10वीं तक के। 12वीं में मात्र एक छात्र है। 11वीं में एक छात्र-एक छात्रा। इस सत्र में 86 लड़कों के मुकाबले 91 बेटियां है।
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