सवा माह पहले सेशन शुरू, 12 दिन बाद टेस्ट, अंग्रेजी स्कूलों में 28 हजार के पास किताबें नहीं
सत्र शुरू होने के डेढ़ माह बाद भी महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूलों में 5वीं कक्षा तक के सभी बच्चों को निशुल्क पुस्तकें नहीं मिल पाई हैं। यह हालात तब हैं, जबकि शिविरा पंचांग के अनुसार 23 से 25 अगस्त तक बच्चों के फर्स्ट टेस्ट शुरू होने हैं। ऐसे में रिजल्ट भी प्रभावित होने के आसार हैं। प्रदेश में 399 सरकारी इंग्लिश मीडियम स्कूल पहले से चल रहे थे। इनमें 65 उदयपुर के थे। सत्र शुरू होने के बाद 26 जुलाई को 164 स्कूल प्रदेश में और बना दिए गए। इनमें उदयपुर को 24 मिले। ऐसे में प्रदेश में कुल इंग्लिश स्कूल 563 हो गए और उदयपुर में इनकी संख्या बढ़कर 89 हो गई। स्कूल बढ़ाए जाने से पहले उदयपुर के 65 स्कूलों में 18 हजार किताबों की जरूरत थी। विभाग ने इनकी डिमांड भेजी, लेकिन 12 हजार ही मिल पाई। अभी 6 हजार किताबें मिलने का इंतजार ही था कि 24 स्कूलें बढ़ने से 7350 हजार किताबों की डिमांड और बढ़ गई। अब उदयपुर को 13350 हजार किताबों की जरूरत है। प्रदेश की बात करें तो 28 हजार 150 बच्चों के लिए लगभग 84 हजार 450 किताबें चाहिएं। ऐसा इसलिए भी हैं, क्योंकि पहले से चल रहे स्कूलों में कई विषयों की किताबें दी जा चुकी हैं।
सभी पहलुओं पर गौर करें तो उदयपुर सहित प्रदेश में किताबों की पूरी सप्लाई होने में 15 दिन का समय लगने की बात कही जा रही है। हालांकि, इनके वितरण आदि का समय भी जोड़ लिए जाए तो बच्चों तक पहुंचने में एक माह तक का समय लग सकता है। उदयपुर में सत्र शुरू होने से पहले के स्कूलों में सामाजिक विज्ञान, गणित, विज्ञान सहित अंग्रेजी सिखाने वाले नवाचारों से जुड़ी 6 हजार किताबें बकाया हैं, जबकि सत्र शुरू होने के बाद शुरू हुए स्कूलों में इन किताबों के साथ ही हिंदी व संस्कृत की किताबें भी शामिल हैं।
पुरानी किताबें वापस लेने का नियम भी फेल, क्योंकि...
पाठ्य पुस्तक मंडल का ही नियम है कि पास होने के बाद जो बच्चे टीसी लेकर अगली कक्षा में प्रवेश करते हैं, उनसे पुरानी किताबें वापस लेनी हैं। इसके उलट हो यह रहा है कि हर साल कुछ न कुछ बदलाव के साथ पूरा पाठ्यक्रम नया छापा जाता है। बड़ी संख्या में बच्चे भी किताबें नहीं लौटाते। अगर वे लौटाएं तो भी सिलेबस चेंज होने के कारण किसी काम की नहीं रह जाती। ऐसे में नई किताबें छापनी ही पड़ती हैं।
तकनीकी कारणों से देरी हो रही
-ओम माली, डिपो मैनेजर, राज्य पाठ्य पुस्तक मंडल, उदयपुर जोन
-शेर सिंह चौहान, प्रदेशाध्यक्ष, राजस्थान शिक्षक व पंचायती राज कर्मचारी संघ
इस तरह समय पर हो सकता है काम
जयपुर के इस कार्यालय से जारी होती हैं पुस्तकें।
1. नया सत्र जुलाई में शुरू होता है। इससे पहले ही विभाग समय रहते तय कर ले कि नए सत्र में कितने स्कूलों को क्रमोन्नत और कितनों को रूपांतरित करना है तो ऐसी दिक्कत ही नहीं आए। प्रवेश के लिए तय सीटों के आधार पर किताबों की संख्या तय कर राज्य पाठ्य पुस्तक मंडल को भेजने में आसानी हो जाए।
2. पांच साल में एक ही बार पाठ्यक्रम बदला जाए। इसको लेकर भी कमेटी गठित कर पहले से ही तय हो जाए किस कक्षा में कौनसा पाठ्यक्रम चलाया जाएगा। इससे हर साल होने वाले खर्च की भी बचत होगी।
3. सेशन शुरू होने से एक महीने पहले ही डिपो तक किताबें पहुंचाने का काम शुरू हो जाए। इससे 15 जुलाई या इससे पहले ही बच्चों तक किताबें पहुंच जाएं।
सत्र शुरू होने के 26 दिन बाद खोले नए स्कूलों ने भी बढ़ाई मुसीबत
स्कूलों में किताब बांटने की डिमांड शिक्षा विभाग भेजता है। इस बार भी उसने भेजी थी। पाठ्यपुस्तक मंडल किताबें छपवाता है। यह हर साल किताबों में 10 प्रतिशत की वृद्धि भी करता है। इसके बाद किताबों को संबंधित जिलों में भेजा जाता है। इसका ठेका जयपुर की कंपनी के पास है। इस बार पहले से चल रहे स्कूलों की किताबें छपने और पहुंचने का सिलसिला चल ही रहा था कि नए स्कूलों खोल दिए गए। ऐसे में तीनों संस्थाओं का गणित गड़बड़ा गया। अब विभाग दोबारा से किताबों के आंकड़े भेज रहा है तो पाठ्यपुस्तक मंडल इन आंकड़ों के हिसाब से किताबें छापने में। अब परिवहन करने वाली कंपनी पर इन्हें समय पर पहुंचाने का जिम्मा रहेगा। पाठ्य पुस्तक मंडल का कहना है कि किताबों में 15 दिन लगेंगे। इसके बाद सप्लाई में कम से कम 25 दिन लगना तय है। फिर इनका वितरण भीसंबंधित बच्चों तक होगा। ऐसे में एक माह लगने की आशंका है।पाठ्य पुस्तक मंडल से जुड़े एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने के आग्रह के साथ बताया कि स्कूलों का कैडर बदलने से पहले पाठ्यपुस्तक मंडल से बात तक नहीं की गई। ऐसे में दिक्कतें ज्यादा बढ़ गई हैं। अगर पहले बताया जाता तो उसी हिसाब से तैयारियां होतीं।
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