आरटीई का मखौल: सरकार ही बन रही संस्कृत भाषा के विस्तार में रोड़ा
सीकर. देवभाषा संस्कृत सरकारी अनदेखी से दुर्गति का शिकार हो रही है। आलम ये है कि प्रदेश में 131 स्कूल में सरकार ने शिक्षकों का पद ही एक ही स्वीकृत कर रखा है जबकि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अनुसार प्राथमिक स्कूल में भी कम से कम दो शिक्षकों की नियुक्ति जरूरी है। यही नहीं प्रदेश के कई स्कूल तो शिक्षक विहीन भी है। जहां शिक्षण व्यवस्था प्रतिनियुक्ति के भरोसे चल रही है। उस पर सत्र शुरू होने के एक महीने बाद भी बच्चों को पूरी किताबें नहीं मिली है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश में संस्कृत शिक्षा के हालात किस कदर बद्तर है।
ये है एकल शिक्षक वाले स्कूल
प्रदेश के 131 स्कूल एकल शिक्षकों के भरोसे चल रहे हैं। जबकि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत स्कूल में न्यूनतम दो शिक्षक अनिवार्य है। कई स्कूल शिक्षक विहीन है तो कक्षा एक के बच्चों को अब तक संस्कृत की पुस्तकें भी नहीं मिली है। इससे शिक्षण व्यवस्था प्रभावित हो रही है।-अनिल भारद्वाज, संस्कृत शिक्षा विभागीय शिक्षक संघ, सीकर
संस्कृत की किताब ही नहीं
संस्कृत स्कूलों में दूसरे चरण का प्रवेशोत्सव एक महीने पहले शुरू हो चुका है। पर अब तक कई ब्लॉकों में किताबें तक नहीं पहुंची है। कक्षा एक की संस्कृत की किताब तो प्रदेशभर में नहीं पहुंची है।
प्रदेश में 3700पद खाली
तय मापदंडों से शिक्षक नियुक्ति नहीं करने के साथ सरकार संस्कृत स्कूलों में मौजूदा खाली पदों को भरने में भी खास रूचि नहीं दिखा रही। वर्तमान में ही प्रदेश के संस्कृत स्कूलों के स्वीकृत 10 हजार 600 पदों में से शिक्षकों के करीब 3700 पद खाली चल रहे हैं।
यह है नियम
शिक्षा का अधिकार अधिनियम व शिक्षा विभाग के नियमानुसार कक्षा पांच तक की स्कूल में एल-वन के कम से कम दो शिक्षक नियुक्त किया जाना जरूरी है। यदि नामांकन 60 से ज्यादा है तो एक शिक्षक अतिरिक्त नियुक्त होगा। नियमानुसार दो शिक्षकों में एक शिक्षक संस्कृत तथा दूसरा सामान्य शिक्षा का लगाया जाता है। प्रदेश की 131 स्कूलों में इन नियमों की पालना नहीं होने से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है
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