उधारी से खुशियों का घी पिला रही सरकार, कर्मचारियों के रुके भुगतान
जयपुर . चुनावी साल में प्रदेश में वित्तीय संकट की आहट सुनाई दे रही है। या यों कहें कि खर्च के मुकाबले आय नहीं बढ़ने व बजट घोषणाओं को आचार संहिता से पहले पूरा करने के लिए राज्य सरकार उधारी से खुशियों का घी पिला रही है। वित्तीय प्रबंधन के नाम पर बेटे-बेटी की शादी, गंभीर बीमारी या बच्चों की फीस के लिए जीपीएफ या अन्य सरकारी जमा से पैसे निकालने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों व सरकारी काम पूरा कर चुके ठेकेदारों के भुगतान रोके जा रहे हैं।
सरकारी कार्मिकों के भुगतान में 15 दिन से एक माह तक देरी की जा रही है और ठेकेदारों के भुगतान में तो इससे ज्यादा समय की देरी की शिकायतें हैं। पैसा चुनावी फायदे की योजनाओं पर डायवर्ट किया जा रहा है। आंकड़ों में राजस्व और उधारी को देखा जाए तो अप्रेल से जुलाई तक वर्ष 2018 के मुकाबले मौजूदा वित्तीय वर्ष में राजस्व केवल 64% ज्यादा आया, जबकि इसी अवधि में उधारी 106% ज्यादा रही। पिछले सालों में उधारी का भार लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इस कारण वित्तीय संकट बढ़ता ही जा रहा है। मौजूदा सरकार के पहले साल में 6 माह में कर्जा लिया, उससे ज्यादा सरकार इस साल 4 माह में ही ले चुकी।
प्रो. सी एस बरला, अर्थशास्त्री
राज्य हो या केन्द्र बजट से बाहर योजनाओं पर खर्च करना आम बात हो गई है। विधानसभा हो या संसद अर्थव्यवस्था पर चर्चा ही नहीं होती। केन्द्र ने 80 करोड़ लोगों को खाद्यान्न बांटने की योजना चलाई और किसानों को नकद राशि बांटी जा रही है, उसे बजट में नहीं लिया। ऐसी योजनाओं के लिए सदन की मंजूरी लेना सरकारों द्वारा उचित नहीं समझा जाता। सरकारों द्वारा पगड़ी बेचकर बारातियों को खाना खिलाया जा रहा है, यह ठीक नही। देश के दुनिया की पांचवी अर्थव्यवस्था बनने की बात हो रही, लेकिन सांसद-विधायक अर्थव्यवस्था के बारे में जानते ही नहीं हैं। सांसद-विधायक की इसको लेकर क्लास होनी चाहिए। चुनावी फायदे की योजनाओं को प्राथमिकता। बजट घोषणाएं आचार संहिता से पहले पूरा करने का दबाव।
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