बढ़ता दर्द, कम होती उम्मीदें: बच्चों को देखने को तरसी आंखें, घर आने की ललक, तृतीय श्रेणी महिला शिक्षिकाओं को अपने गृह जिले में आने की उम्मीदों पर फिर पानी
श्रीगंगानगर. आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर आचार संहिता की संभावनाएं लगने लगी हैं। पिछले साढ़े चार साल से अधिक समय से तृतीय श्रेणी महिला शिक्षक बार-बार राज्य सरकार से गुहार लगाते रहे कि उनका तबादला गृह जिले में कर दिया जाए, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अगले महीने आचार संहिता लगते ही फिर नई सरकार से यही उम्मीदों का सिलसिला शुरू हो जाएगा। बीते साल दर साल इन महिला टीचर्स की पीड़ा खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। सैकड़ों बार लिखित, मौखिक और संगठनों के माध्यम से सरकार तक फीडबैक तक पहुंचाया गया, लेकिन एक न सुनी।
तृतीय श्रेणी की इन महिला अध्यापिकाओं में ज्यादातर वे परेशान हैं, जो अपने गृह जिले की बजाय ढाई सौ से लेकर साढ़े छह सौ किमी तक दूर के जिले में कार्यरत है। कई महिला शिक्षक अपने पति की बरसी के दिन घर पर जा नहीं सकती। आंखों से बस आसूओं के सिवाय इनके पास कोई विकल्प नहीं है। कई महिला शिक्षिकाओं के छोटे बच्चे हैं, लेकिन मजबूरी ऐसी है कि अपने पास नहीं रख सकती। मासूस बच्चों को सहलाने का मातृत्व का अधिकार होने के बावजूद वंचित हो रहा है। श्रीगंगागनर जिला मुख्यालय से लेकर रावला तक करीब पांच सौ ऐसी महिला टीचर्स हैं, जो जोधपुर, जैसलमेर दौसा, जालौर, बीकानेर, झुंझुनूं, नागौर, टोंक आदि जिले के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत है।
इस बीच, पिछले दिनों शुरू हुई शिक्षक भर्ती तृतीय श्रेणी में भी करीब दो हजार से अधिक ऐसे अभ्यर्थी है, जो अपने गृह जिले की बजाय दूसरे जिले के लिए चयनित हुए हैं। जिले में 397 में 155 चयनित तो बाहरी जिलों से आए हैं, जबकि श्रीगंगानगर जिले के 242 चयनित हैं, जिनको गृह जिला आवंटित हुआ है।
गुपचुप तरीके से करवाए तबादले
तृतीय श्रेणी के इन शिक्षिकाओं में चंद केस सामने आए हैं, जिन्होंने गुपचुप तरीके से ऊंची एप्रोच के बलबूते पर तबादला करवाया है। ऐसे केस सावर्जनिक रूप से बाहर नहीं आ रहे हैं। इधर, बाहरी जिलों में कार्यरत महिला शिक्षिकाओं के परिजनों का कहना है कि सरकार ने कई बार उम्मीदें जगाई थी। बार बार मंत्रियों ने बयान दिया कि नई तबादला पॉलिसी बनाई जा रही है। सरकार खुद के झमले में उलझी रही और पूरा कार्यकाल समाप्त होते होते यह पॉलिसी तक नहीं बना पाई।
ढाई साल बच्चे के साथ पांच सौ किमी दूर
श्रीगंगानगर निवासी मूना चौधरी अपने ढाई साल के बच्चे के साथ जोधपुर के ओसियां क्षेत्र गांव भैरूसागर में शिक्षिका है। छह साल से श्रीगंगानगर वापस आने का प्रयास कर रही है, लेकिन राज्य सरकार ने इस शिक्षिका को राहत नहीं दी है। पति बीएसएफ में है और पश्चिम बंगाल में तैनात है। ऐसे में पति और पत्नी देश के अलग अलग कोने में अपनी अपनी डयूटियां करने को मजबूर हैं।
बच्चों और ससुराल को छोड़ने की मजबूरी
हनुमानगढ़ जंक्शन निवासी किरण कामरा का विधवा कोटे में शिक्षक भर्ती तृतीय श्रेणी में चयन हुआ है। बीकानेर जिला आवंटित हुआ है। काउंसलिंग दो दिन बाद शुरू हो रही है। ससुर बीमार रहते हैं, ऐसे में हनुमानगढ़ रहने की मजबूरी बताई, जबकि पीहर अलवर जिले में हैं। इस महिला के दो बच्चे हैं, क्रमश: कक्षा चार और कक्षा छठी में अध्यनरत हैं। पूरे परिवार को किरण संभालती है।
आठ साल से इंतजार फिर भी पूरा नहीं
बीरबल चौक श्रीगंगानगर निवासी ममता पत्नी ज्योति बसु वर्ष 2015 से जोधपुर में तृतीय श्रेणी शिक्षिका है। वह फिलहाल फलौदी जिले के बाप पंचायत समिति क्षेत्र गांव गाड़ना के राउप्रावि में कार्यरत है। दो बेटियां हैं, एक आठ साल की और दूसरी तीन साल की। तीन साल की बेटी के साथ शिक्षिका ममता ड्यूटी स्थल के पास किराये के मकान में रहती है। बड़ी बेटी यहां श्रीगंगानगर में अपने दादा-दादी के संग रहती है। ममता के पति पंजाब में जॉब करते हैं। यह परिवार तीन जगह बंटा हुआ है।
साढ़े छह सौ किमी दूर अकेले रहने की मजबूरी
श्रीगंगानगर जिले के केसरीसिंहपुर निवासी संजना तनेजा वर्ष 2018 से यहां से करीब साढ़े छह सौ किमी दूर पर स्थित दौसा जिले के एक ढाणी में संचालित सरकारी स्कूल में तृतीय श्रेणी शिक्षिका है। वहां बच्चों के रहने की व्यवस्था तक नहीं है। एक आठ साल की बेटी और दो जुड़वां बच्चे ढाई-ढाई साल के खुद की बजाय पति के पास हैं। ससुर विकलांग हैं। पति ई मित्र की दुकान संचालित करते हैं। इस शिक्षिका को उम्मीद है कि सरकार तबादला करेगी, तब परिवार के संग रहेगी, लेकिन अब तक यह सपना पूरा नहीं हो पाया है। हालांकि उसने विधायकों के यहां खूब चक्कर काटे हैं।
खूब कराई सिफारिश फिर भी नहीं पड़ी पार
रायसिंहनगर निवासी ममता शर्मा जोधपुर जिले में तृतीय श्रेणी शिक्षिका हैं। पति बीकानेर में बैंक में कार्यरत हैं। एक बेटा 11 साल का हो चुका है। वह अपने दादा दादी के पास रायसिंहनगर रहता हैं। इस शिक्षिका ने अपना तबादला गृह जिले में कराने के लिए शिक्षा मंत्री तक सिफारिशें करवाई, लेकिन पार नहीं पड़ी। परिवार से दूर रहने की मजबूरी गिनवाई। असर अब तक नहीं हो पाया है। हालाकि उम्मीदों का दामन अब तक नहीं छोड़ा है।
चार साल से वापसी का इंतजार
करणपुर निवासी लवप्रीत कौर वर्ष 2019 से फलौदी में टीचर है। वापसी का इंतजार कर रही है, लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई। पिछले दिनों उसकी शादी हो चुकी है। अब चिंता यह सताने लगी है कि वह फलौदी में परिवार के बिना कैसे रहेगी।
अपने से ज्यादा बच्चों के कॅरियर की ज्यादा चिंता
नेतेवाला निवासी विधवा पूनम योगी वर्ष 2022 से जालौर में तृतीय श्रेणी अध्यापिका के पद पर कार्यरत है। बेटा और बेटी के कॅरियर को लेकर ज्यादा चिंतिंत है। ननिहाल में रहने वाले बच्चों को अच्छी पढाई कराने की तमन्ना पाले इस मां को वापस श्रीगंगानगर जिले में पोस्टिंग के लिए कईयों ने शिक्षा मंत्री तक सिफारिश की, लेकिन पार नहीं पड़ी। पूनम कम उम्र में ही हालात के भंवर में फंस गई, मगर उसने हार नहीं मानी। पति की असामयिक मृत्यु और दो बच्चों की जिम्मेदारी के बावजूद अपने बलबूते पर शिक्षिका की नौकरी पाई। अब गृह जिले में आने के लिए गुहार कर रही है।
हमारी भी सुनो अर्ज
इन महिला शिक्षिकाओं से बातचीत की तो सबकी जुबां पर एक ही बात थी कि हमारी भी सुने सरकार। समय रहते सरकार ने कागजी प्रयास किए, लेकिन जमीनी हकीकत को छुआ तक नहीं। इन शिक्षिकाओं का कहना है कि एक ओर सरकार 33 प्रतिशत महिला आरक्षण कानून पारित कर रही है, वहीं महिलाओं को ही उनके साथ न्याय नहीं मिल रहा है।
इलाके के विधायकों से कई बार इन महिला शिक्षकों के स्वयं और परिवारिक सदस्यों ने डिजायर कराई। आवेदन स्वीकार किए गए, लेकिन किसी ने उनकी एक न सुनी। हालांकि विधायकों ने सरकार तक इन महिला टीचर्स की पीड़ा पहुंचाई। प्रभावी ढंग से विरोध नहीं होने के कारण सरकार ने भी सिर्फ आश्वासन पर आश्वासन जरूर दिया। इधर, एक महिला शिक्षिका के पारिवारिक सदस्य ओमप्रकाश शर्मा का कहना है कि शिक्षा मंत्री से सीधा मिला था, लेकिन तृतीय श्रेणी का नाम लेते ही आवेदन तक स्वीकार नहीं किया। सीएम तक शिकायत कर चुका हूं, लेकिन कोई फरियाद तक नहीं सुनी गई। इस बुजुर्ग शर्मा का कहना था कि सरकार यदि महिला टीचर्स को उनके गृह जिले में तबादला करती तो फिजां बदल जाती।
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