आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के लिए विवाहित होने की शर्त असंवैधानिक: हाईकोर्ट
जोधपुर. हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता या सहयोगिनी पद के लिए महिला के विवाहित होने की शर्त को असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया है। साथ ही सरकार को नियमों में उचित संशोधन करने की स्वतंत्रता दी है, जो महिला अभ्यर्थियों से शादी के बाद अन्यत्र जाने की स्थिति में सेवाएं समाप्त करने की अंडरटेकिंग लेने को अधिकृत करती है।
न्यायाधीश दिनेश मेहता की एकलपीठ में याचिकाकर्ता मधु की ओर से अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मिनी कार्यकर्ता और सहयोगिनी के चयन की पात्रता पर सवाल उठाया और कहा कि इन पदों के लिए केवल विवाहित महिला को ही पात्र मानना मनमाना और असंवैधानिक है। कोर्ट ने पाया कि इस मामले में मौलिक महत्व का प्रश्न यह है कि क्या किसी अभ्यर्थी के साथ उसकी वैवाहिक स्थिति के आधार पर भेदभाव किया जा सकता है या उसे सार्वजनिक रोजगार से वंचित किया जा सकता है? पीठ ने कहा कि यह अविवाहित महिलाओं के लिए यह भेदभावपूर्ण है और अपमानजनक भी है।
यह प्रथम दृष्टया अवैध, मनमाना और संविधान की मूल योजना के विरुद्ध है, जो समानता की गारंटी देता है। पीठ ने कहा कि कोर्ट यह देखने के लिए बाध्य है कि सरकार ने परिपत्र में विवादास्पद स्थिति को शामिल करके भेदभाव का एक बिलकुल नया मोर्चा, जिसकी संविधान के निर्माताओं ने कल्पना या विचार भी नहीं किया था, खोल दिया है। वर्तमान मामला एक ऐसा मामला है, जिसमें महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को एक नया पहलू दिया गया है। हाईकोर्ट ने कहा कि केवल यह तथ्य कि कोई अभ्यर्थी अविवाहित है, उसे अयोग्य घोषित करने का कारण नहीं हो सकता।
मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
कोर्ट ने कहा कि अविवाहित होने के आधार पर महिला को सार्वजनिक रोजगार से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत दिए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन और महिला की गरिमा पर आघात है।
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