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मंगलवार, 26 सितंबर 2023

सेवानिवृत्ति आयु में असमानता को खत्म करने की जरूरत

 सेवानिवृत्ति आयु में असमानता को खत्म करने की जरूरत

अशोक कुमार

पूर्व कुलपति, गोरखपुर विश्वविद्यालय

वर्तमान में, भारत में महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की आयु सभी राज्यों में एक समान नहीं है। कुछ राज्यों में यह 60 वर्ष है, जबकि कुछ राज्यों में यह 62 या 65 वर्ष है। सेवानिवृत्ति आयु में यह असमानता समाप्त होना आवश्यक है। एक समान सेवानिवृत्ति आयु सुनिश्चित करने से शिक्षकों के लिए समान अवसर उपलब्ध होंगे और वे अपने अनुभव का पूरा लाभ विद्यार्थियों को दे सकेंगे। यही वजह है कि पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर सरकार ने विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों के लिए रिटायरमेंट की आयु 62 से बढ़ाकर 65 साल करने की घोषणा की थी। सरकारी आदेश के अनुसार 62 साल की आयु तक पहुंचने से पहले विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों के प्रदर्शन की समीक्षा होगी। दिल्ली विश्वविद्यालय तो और भी आगे है। वहां प्रोफेसरों की सेवानिवृत्ति आयु 65 वर्ष है। इसके बाद भी सेवानिवृत्त प्रोफेसरों की सेवा पांच वर्ष तक और लेने का प्रस्ताव सामने आया।


यूजीसी ने विश्वविद्यालय के शिक्षकों की सेवानिवृत्ति आयु 65 वर्ष निर्धारित की है। यूजीसी के अनुसार, सेवानिवृत्ति आयु को इस तरह से निर्धारित किया जाना चाहिए जिससे शिक्षक अपने काम को प्रभावी ढंग से जारी रख सकें। अनुभवी शिक्षक अपने छात्रों को बेहतर मार्गदर्शन दे सकते हैं। इसलिए, ऐसी व्यवस्था जरूरी है जिससे शिक्षक अपने अनुभव को छात्रों के साथ साझा कर सकें। इसके बावजूद महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में सेवानिवृत्ति आयु में भिन्नता बनी हुई है। हालांकि, कुछ लोगों का तर्क है कि शिक्षकों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने से युवा वर्ग को नुकसान होगा। उनका मानना है कि अनुभवी शिक्षकों की तुलना में युवा शिक्षक अधिक ऊर्जावान और प्रेरक होते हैं। हालांकि, यह तर्क तथ्यों पर आधारित नहीं है। कई अध्ययनों से पता चला है कि अनुभवी शिक्षक अपने छात्रों को बेहतर प्रदर्शन करने में मदद कर सकते हैं। यह मुद्दा विवाद का नहीं है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि उच्च शिक्षण संस्थानों में युवा के साथ अनुभवी शिक्षक भी जरूरी हैं। युवा शिक्षक नहीं होंगे, तो बाद में शिक्षकों की कमी हो जाएगी।


इस बात को तो मानना ही होगा कि सेवानिवृत्ति की आयु तो पूरे देश में संचालित उच्च शिक्षण संस्थानों में एक ही होनी चाहिए। उच्च शिक्षा को क्षेत्रीय नजरिए से देखना ठीक नहीं है। यहा एक राष्ट्रीय मुद्दा है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में समान मानक और नीतियां होना महत्त्वपूर्ण है। इसलिए, इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा और निर्णय लेना उचित है। एक समान सेवानिवृत्ति आयु सुनिश्चित करने से उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों के बीच असमानता खत्म होगी। एक समान सेवानिवृत्ति आयु सुनिश्चित करेगी कि शिक्षकों को अपने अनुभव और ज्ञान को छात्रों के साथ साझा करने के लिए पर्याप्त समय मिले। अनुभवी शिक्षक अपने छात्रों को शोध और नवाचार के लिए प्रेरित कर सकते हैं। समय-समय पर कई विशेषज्ञों ने माना है कि महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय के शिक्षकों की सेवानिवृत्ति आयु एक समान 65 वर्ष करना एक अच्छा विचार है। यह शिक्षकों के लिए, छात्रों के लिए और शैक्षिक प्रणाली के लिए फायदेमंद होगा। अगर यह आयु नहीं बढ़ती तो 2027 के बाद 20 साल का अनुभव रखने वाले शिक्षकों की संख्या बहुत कम हो जाएगी। इससे शोध कार्य प्रभावित होगा, लेकिन रिटायरमेंट आयु बढ़ने से अनुभवी शिक्षकों की कमी नहीं रहेगी।


वृद्धावस्था सामाजिक सुरक्षा कवरेज के मामले में भारत बहुत पीछे है। पिछले तीन दशक से अधिक समय से भारत में सेवानिवृत्ति की आयु औसतन 60 वर्ष है, जो वैश्विक स्तर पर सबसे कम वाली श्रेणी में है। जीवन प्रत्याशा बढ़ रही है। कई उच्च शिक्षण संस्थानों के शिक्षक 65 वर्ष से पूर्व ही सेवानिवृत्त हो रहे हैं, जबकि वे संस्थान में रहकर विद्यार्थियों के लिए उपयोगी बन सकते हैं। शिक्षकों को अपने विषयों में गहन ज्ञान और कौशल होना चाहिए। सेवानिवृत्ति आयु का मुद्दा शिक्षकों, छात्रों और शिक्षा प्रणाली के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है। शिक्षकों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने से शिक्षा के स्तर में निश्चित रूप से सुधार होगा। इसके साथ शर्त यह है कि विद्यार्थी अध्ययन के प्रति गंभीर रहें और शिक्षक भी अपने काम को ईमानदारी से करें। उच्च शिक्षण संस्थान ज्ञान के केंद्र हैं, समय बिताने के नहीं।


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