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गुरुवार, 16 नवंबर 2023

सबको रास आई ट्यूशन की पढ़ाई, सरकारी स्कूलों के बच्चे भी नहीं पीछे,कहीं स्टेटस सिम्बल तो कहीं मजबूरी सरकारी शिक्षक ट्यूशन लेने में आगे

 

सबको रास आई ट्यूशन की पढ़ाई, सरकारी स्कूलों के बच्चे भी नहीं पीछे,कहीं स्टेटस सिम्बल तो कहीं मजबूरी  सरकारी शिक्षक ट्यूशन लेने में आगे


  • पचास फीसदी से अधिक बच्चे ट्यूशन पर निर्भर
  • अंग्रेजी-गणित सबसे कठिन, ट्यूशन में इन्हीं विषय की प्राथमिकता ज्यादा

नागौर. स्कूली बच्चों के लिए ट्यूशन अब अनिवार्य होता जा रहा है। कहीं और अच्छे अंक पाने की लालसा तो कहीं बच्चे के फेल होने का डर अभिभावकों को इसके लिए प्रेरित कर रहा है। करीब पंद्रह साल पहले तक ट्यूशन पर जाने वाले करीब पंद्रह फीसदी विद्यार्थियों की तादाद अब पचास फीसदी से अधिक बताई जाती है। शहरी अथवा निजी स्कूली बच्चों की अपेक्षा अब सरकारी स्कूल के विद्यार्थी भी ट्यूशन की दौड़ में पीछे नहीं हैं।


सूत्रों के अनुसार ट्यूशन व कोचिंग का यह चलन दूरदराज के गांव तक पहुंच चुका है। स्कूल में पढ़ाई करवाने के साथ ट्यूशन करवाना कहीं स्टेटस सिम्बल तो कहीं आवश्यक हो गया है। कुछ समय पहले तक स्कूली पढ़ाई में बोर्ड कक्षा के विद्यार्थी ही ट्यूशन लेते थे जो अब कहीं तो नर्सरी से लेकर कमोबेश सभी कक्षाओं के बच्चे इसकी जद में आ गए हैं। मीडियम हिंदी हो या अंग्रेजी, स्कूल निजी हो या सरकारी, बच्चे किसी भी बोर्ड के हों, ट्यूशन पढ़ाई का अभिन्न अंग बन गया है। ऑनलाइन क्लास/कोर्स का चलन अभी यहां के विद्यार्थियों को खास रास नहीं आ रहा है।


सूत्र बताते हैं कि इस समय नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिले में करीब साढ़े तीन लाख विद्यार्थी तो सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं, जबकि निजी स्कूलों में इनकी संख्या लगभग एक लाख बताई जाती है। इस तरह पूरे जिले में बारहवीं तक के करीब साढ़े चार लाख विद्यार्थी हैं। कहीं बच्चा फेल ना हो जाए या फिर कहीं बच्चा परसंटेज में पिछड़ ना जाए, ऐसे तमाम डर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने पर विवश कर देते हैं।


बोर्ड परीक्षा के दौरान होने वाले प्रेक्टिकल परीक्षा में अधिक से अधिक अंक लाने के पीछे भी ट्यूशन एक बहाना बन रही है। विज्ञान संकाय में रसायन/भौतिक हो या फिर जीव विज्ञान इसके अलावा भी कुछ अन्य विषय के प्रेक्टिकल एग्जाम होते हैं। ऐसे में अच्छे परसंटेज के लिए भी इस पर फोकस करना जरूरी होता है। ऐसे में ये विद्यार्थी अपने स्कूल के इन विषय के शिक्षकों से ट्यूशन/कोचिंग लेने में आगे रहते हैं। कहा तो यह भी जाता है कि ट्यूशन पढ़ने से उपस्थिति की अनिवार्यता सहित कुछ मामलों में भी इन विद्यार्थियों को लाभ मिल जाता है।


स्कूली बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के काम में सरकारी शिक्षक सबसे आगे हैं। गांव/कस्बा हो या शहर अंग्रेजी व गणित के साथ विज्ञान और इससे जुड़े विषय के शिक्षक पूरे दिन बच्चों को पढ़ाने में व्यस्त रहते हैं। कहीं अलग तो कहीं ग्रुप में यह पढ़ाई कराई जा रही है। ट्यूशन फीस भी इसी हिसाब से चार्ज की जाती है। घर जाकर बच्चों को पढ़ाने का चलन लगभग समाप्त हो गया है। अब ट्यूटर इसके लिए अपने ही घर बच्चों को बुलाते हैं।


पहले की तुलना में ट्यूशन व कोचिंग में छात्राओं की संख्या तो बढ़ी पर छात्रों की तुलना में यह अब भी कम है। असल में ग्रामीण इलाकों में छात्राओं को रोजाना पढऩे के लिए भेजने पर अब भी काफी संख्या में अभिभावक सहमत नहीं हो पाते। इसके अलावा छात्रों की तुलना में छात्राएं पढ़ने पर घर में अधिक ध्यान देती हैं तो अभिभावक ट्यूशन के लिए छात्रों पर ज्यादा जोर देते हैं। हालांकि गांव/समाज/मोहल्ले में अपनी इमेज का ध्यान रखते हुए भी बच्चों को ट्यूशन पर भेजने को तरजीह दी जाने लगी है।


इनका कहना

कुछ सालों में ट्यूशन का क्रेज काफी बढ़ा है। अच्छे नंबर/श्रेणी के लिए तो कहीं पीछे ना रह जाएं, इसलिए भी कोचिंग/ट्यूशन को प्राथमिकता दी जाने लगी है। होशियार बच्चे तक और अच्छे नंबर लाने के लिए ट्यूशन करते हैं। यह भी सही है कि बच्चों की पढ़ाई अब घरों के लिए स्टेटस सिम्बल बन चुकी है।-बस्तीराम सांगवा, प्राचार्य, राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय, गिनाणी नागौर।


अंग्रेजी-गणित का डर सबसे ज्यादा

शिक्षकों के साथ विद्यार्थियों से हुई बातचीत में सामने आया कि छोटी कक्षाओं से लेकर दसवीं तक सबसे ज्यादा डराने वाले विषय अंग्रेजी और गणित ही हैं। अधिकांश बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने की असली वजह भी ये विषय हैं। ग्यारहवीं-बारहवीं कक्षा में विज्ञान संकाय वाले विद्यार्थी तो कमोबेश नब्बे फीसदी ट्यूशन/कोचिंग पढ़ते हैं। ना के बराबर ट्यूशन पढऩे वालों में आर्ट्स के स्टूडेंट हैं हालांकि ये भी अंग्रेजी अथवा कुछ कला संकाय के हार्ड लगने वाले विषय की कोचिंग कर ही लेते हैं।


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