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रविवार, 3 दिसंबर 2023

तीन हजार से अधिक स्कूल : करीब साढ़े तीन लाख बच्चों के अलावा शिक्षकों के साथ कर्मचारियों की कैसे होगी मॉनिटरिंग, जिले के शिक्षा विभाग का वन मैन शो, एक अधिकारी पर चार का काम

 

तीन हजार से अधिक स्कूल : करीब साढ़े तीन लाख बच्चों के अलावा शिक्षकों के साथ कर्मचारियों की कैसे होगी मॉनिटरिंग, जिले के शिक्षा विभाग का वन मैन शो, एक अधिकारी पर चार का काम

स्कूली पढ़ाई के अलावा शिक्षा के अन्य प्रोजेक्ट पर काम ठप-शिक्षकों की पहले से ही कमी

नागौर. काम अनेक पर अधिकारी एक। यह कहावत नागौर जिले के शिक्षा विभाग पर पूरी तरह चरितार्थ साबित हो रही है। कहने को भले ही डीडवाना-कुचामन जिला अलग कर दिया गया हो पर स्कूली शिक्षा का पूरा कामकाज अभी नागौर मुख्यालय से ही संचालित हो रहा है। मजे की बात यह कि जिला शिक्षा अधिकारी (प्राथमिक) के साथ मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी ही नहीं अतिरिक्त जिला परियोजना समन्वयक का दायित्व भी एक ही अधिकारी के पास हैं। जिला शिक्षा अधिकारी (माध्यमिक) रामनिवास जांगिड़ पर अपने काम-काज के साथ इन तीनों का दायित्व भी आन पड़ा है। साढ़े तीन लाख बच्चों के साथ शिक्षक व कर्मचारियों की देखरेख का काम सिर्फ इनके ही भरोसे हैं।


सूत्रों के अनुसार नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिले के तीन हजार से अधिक सरकारी स्कूल इन दिनों भगवान भरोसे हो गए हैं। मुख्य दायित्व वाले चार अधिकारियों में से सिर्फ एक ही कार्यरत हैं, शेष तीनों का भार भी इन तीनों पर है। तकरीबन तीन महीने पहले यहां समग्र शिक्षा के अतिरिक्त जिला परियोजना समन्वयक बस्तीराम सांगवा को स्थानांतरित कर एक स्कूल का प्रिंसिपल बना दिया गया। इसके कुछ दिन गुजरे ही थे जिला शिक्षा अधिकारी (प्राथमिक) सुरेंद्र सिंह शेखावत को डीडवाना स्थानांतरित कर दिया। इसका भी कार्यभार जांगिड़ को सौंप दिया गया। इन दोनों पदों पर किसी को नहीं लगाया गया, इसका इंतजार चल ही रहा था कि मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी (सीडीइओ) मुंशी खां सेवानिवृत्त हो गए। होना क्या था, इनकी जिम्मेदारी भी जांगिड़ को थमा दी गई।


सूत्रों का कहना है कि ऐसा नहीं है कि इन पदों के लिए योग्य व्यक्तियों का अकाल है। असल में डीपीसी हो चुकी है और प्रदेशभर में 186 जने पद मिलने के इंतजार में हैं। न्यायालय में लगे किसी मामले की अड़चन कह लें या फिर आचार संहिता लगने का बहाना, फिलहाल आलम यह है कि माध्यमिक-प्राथमिक के साथ पूरे जिले के शिक्षा संबंधी प्रोजेक्ट ही नहीं अन्य कार्य अथवा कार्यक्रम की बागडोर जांगिड़ के पास है। स्कूल से लेकर अन्य की मॉनिटरिंग का कामकाज भी ठीक-तरीके से नहीं हो पा रहा है।



तो क्यों आएं बच्चे

ऐसा नहीं है कि सरकार ने अपने स्तर पर कोई प्लान नहीं किया। सरकार ने बच्चों की शिक्षा के लिए अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खोले तो बच्चों की शिक्षा के साथ परिवहन ही नहीं पोषाहार के साथ स्कूली ड्रेस जैसी सुविधा भी मुहैया कराई। बावजूद इसके शिक्षण के क्षेत्र की खामी ठीक ढंग से दूर नहीं हो पाई। शिक्षकों की कमी बराबर बनी हुई है। कई स्कूल तो एक-दो शिक्षकों के भरोसे हैं। इसके अलावा शिक्षकों के कार्य की गुणवत्ता का ठीक ढंग से आकलन नहीं हो पा रहा है। वो इसलिए भी कि जिनके पास यह काम है, वो पद भी अधिकांश खाली हैं।


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