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सोमवार, 4 दिसंबर 2023

Old Pension: राजस्थान, छत्तीसगढ़ में पुरानी पेंशन पर मंडराया खतरा, क्या फिर NPS में शामिल होंगे सरकारी कर्मी?


 

Old Pension: राजस्थान, छत्तीसगढ़ में पुरानी पेंशन पर मंडराया खतरा, क्या फिर NPS में शामिल होंगे सरकारी कर्मी?

नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) के अध्यक्ष विजय कुमार बंधु ने कहा है, ये संभावना नहीं, बल्कि तय समझें कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अब 'पुरानी पेंशन' व्यवस्था खत्म हो सकती है। इस बाबत एनएमओपीएस की कार्यकारिणी की बैठक में विचार होगा। देश में 'पुरानी पेंशन' व्यवस्था बहाल होने तक कर्मचारियों का आंदोलन जारी रहेगा...


मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस सरकार द्वारा बहाल की गई 'पुरानी पेंशन' व्यवस्था पर अब खतरा मंडराने लगा है। इन दोनों राज्यों में भाजपा ने प्रचंड जीत दर्ज कराई है। केंद्र सरकार ने 'पुरानी पेंशन' को लेकर पहले ही अपनी मंशा जाहिर कर दी है। देश में किसी भी सूरत में ओपीएस लागू नहीं किया जाएगा। खुद प्रधानमंत्री मोदी, इस विषय में अपनी राय स्पष्ट कर चुके हैं। एनपीएस में सुधार के लिए कमेटी का गठन किया गया है। कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद एनपीएस में बदलाव किया जा सकता है। नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) के अध्यक्ष विजय कुमार बंधु ने कहा है, ये संभावना नहीं, बल्कि तय समझें कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अब 'पुरानी पेंशन' व्यवस्था खत्म हो सकती है। इस बाबत एनएमओपीएस की कार्यकारिणी की बैठक में विचार होगा। देश में 'पुरानी पेंशन' व्यवस्था बहाल होने तक कर्मचारियों का आंदोलन जारी रहेगा।


ओपीएस, एक बड़ा मुद्दा रहा है …

विजय कुमार बंधु ने बताया, राजस्थान सहित दूसरे प्रदेशों के चुनाव में ओपीएस का मुद्दा प्रभावी रहा है। अगर राजस्थान के पोस्टल बैलेट को देखें, तो उसमें 170 से अधिक सीटों पर कांग्रेस पार्टी आगे रही थी। इसी तरह मध्यप्रदेश के चुनावी नतीजों का विश्लेषण किया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि ओपीएस ही चुनावी हार-जीत का प्रमुख कारण रहा है। यह कह सकते हैं कि हार-जीत के समीकरणों को तय करने के लिए जो अहम वजह होती हैं, उनमें से एक ओपीएस है। अगर राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पुरानी पेंशन व्यवस्था को खत्म किया जाता है, तो उसके खिलाफ सरकारी कर्मचारी आवाज उठाएंगे। इस आंदोलन को देश के हर हिस्से में ले जाया जा रहा है। इस कड़ी में पटना में 10 दिसंबर को पुरानी पेंशन लागू कराने के लिए सरकारी कर्मियों की एक बड़ी रैली आयोजित होगी।


पीएम ने बताया था शॉर्ट कट पॉलिटिक्स

केंद्र सरकार की तरफ से कई बार ओपीएस को लेकर बयान सामने आए हैं। उनमें कहा जा रहा है कि जो राज्य पुरानी पेंशन लागू कर रहे हैं, वहां पर भविष्य में वित्तीय संकट उत्पन्न हो सकता है। राज्यों को विभिन्न मदों के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली आर्थिक सहायता को बंद किया जा सकता है। पीएम मोदी, इस तरह की स्कीम को शॉर्ट कट पॉलिटिक्स का नाम दे चुके हैं। राजनीतिक दलों को ऐसी घोषणाओं से बचना चाहिए। ऐसी राजनीति, देश की अर्थव्यवस्था को खोखला कर देगी।


 दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी ने हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक चुनाव में ओपीएस का वादा किया था। इसी तरह कांग्रेस शासित राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ओपीएस बहाल कर दी गई थी। कांग्रेस ने मध्यप्रदेश के चुनाव की गारंटियों में ओपीएस को शामिल किया था। राजस्थान के चुनावी घोषणापत्र में कांग्रेस ने कहा था कि पुरानी पेंशन व्यवस्था को कानूनी दर्जा दिया जाएगा। राहुल और प्रियंका ने अपनी चुनावी रैलियों में दूसरे मुद्दों के साथ ओपीएस पर भरपूर फोकस किया था। जब यह स्कीम राजस्थान में लागू की गई, तब राज्य वित्त आयोग का कहना था कि इसके लिए 41 हजार करोड़ रुपयों की जरुरत होगी।


पुरानी पेंशन को लेकर क्या कहा गया

राजस्थान कैडर के पूर्व आईएएस राजीव महर्षि, जो केंद्रीय वित्त सचिव और राजस्थान के मुख्य सचिव जैसे पदों पर काम कर चुके हैं, उन्होंने गत वर्ष ओपीएस को वित्तीय आपदा का नाम दिया था। उनका कहना था कि केंद्र और राज्य, दोनों के लिए यह स्कीम वित्तीय आपदा साबित होगी। राज्यों पर पहले से ही इतना कर्ज है कि उस स्थिति में ओपीएस, अर्थव्यवस्था को पूरी तरह बर्बाद कर सकती है। सीएजी गिरिश चंद्र मुर्मु ने पुरानी पेंशन स्कीम के चलते राज्यों की वित्तीय स्थिति पर पड़ने वाले प्रभावों के जोखिमों को लेकर संकेत दिए थे।


 उन्होंने कहा था, कुछ राज्यों में पुरानी पेंशन व्यवस्था को बहाल किए जाने से फिस्कल रिस्क बना रहेगा। आरबीआई और 15वें वित्त आयोग ने भी इस बाबत संज्ञान लिया है। योजना आयोग (अब नीति आयोग) के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया ने ओपीएस को लेकर कहा था, ये सबसे बड़ी रेवड़ी है। एक तरफ तो राजस्व के घाटे को कम करने की बात की जाती है, लेकिन खर्चों को कैसे कम किया जाए, इसे पर कोई चर्चा नहीं होती है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस संबंध में जिस रेवड़ी की बात कही है, वो सही है। पुरानी पेंशन सिस्टम, इसी तरह की सबसे बड़ी रेवड़ियों में से एक है।  


अनिश्चितकालीन हड़ताल के पक्ष में हैं कर्मचारी

'पुरानी पेंशन बहाली' की लड़ाई अब अंतिम दौर की तरफ बढ़ रही है। अगर सरकार, कर्मचारियों की इस मांग को नहीं मानती है, तो उस स्थिति में अनिश्चितकालीन हड़ताल हो सकती है। कितने कर्मचारी, अनिश्चितकालीन हड़ताल के पक्ष में हैं, यह पता लगाने के लिए केंद्र सरकार में दो बड़े विभाग, रेलवे और रक्षा विभाग (सिविल) में स्ट्राइक बैलेट यानी मतदान कराया गया था। ओपीएस के लिए गठित नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ एक्शन (एनजेसीए) की संचालन समिति के राष्ट्रीय संयोजक एवं स्टाफ साइड की राष्ट्रीय परिषद 'जेसीएम' के सचिव शिवगोपाल मिश्रा ने कहा, अब स्ट्राइक बैलेट का नतीजा आ गया है।  


रेलवे के 11 लाख कर्मियों में से 96 फीसदी कर्मचारी ओपीएस लागू न करने की स्थिति में अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने के लिए तैयार हैं। इसके अलावा रक्षा विभाग (सिविल) के चार लाख कर्मियों में से 97 प्रतिशत कर्मी, हड़ताल के पक्ष में हैं। यह मतदान पूरी तरह निष्पक्ष तरीके से हुआ है। कर्मियों ने बिना किसी दबाव के अपना मत डाला है। अब ज्वाइंट फोरम की बैठक में अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने के लिए निर्धारित तिथि की घोषणा की जाएगी।


18 साल बाद रिटायर हुए कर्मी को मिली इतनी पेंशन

शिव गोपाल मिश्रा ने बताया, एनपीएस में कर्मियों जो पेंशन मिल रही है, उतनी तो बुढ़ावा पेंशन ही है। कर्मियों ने कहा है कि देश में सरकारी कर्मियों, पेंशनरों, उनके परिवारों और रिश्तेदारों को मिलाकर वह संख्या दस करोड़ के पार पहुंच जाती है। अगर ओपीएस लागू नहीं होता है, तो लोकसभा चुनाव में भाजपा को राजनीतिक नुकसान झेलना होगा। एनपीएस स्कीम में शामिल कर्मी, 18 साल बाद रिटायर हो रहे हैं, उन्हें क्या मिला है।  


एक कर्मी को एनपीएस में 2417 रुपये मासिक पेंशन मिली है, दूसरे को 2506 रुपये और तीसरे कर्मी को 4,900 रुपये प्रतिमाह की पेंशन मिली है। अगर यही कर्मचारी पुरानी पेंशन व्यवस्था के दायरे में होते तो उन्हें प्रतिमाह क्रमश: 15250 रुपये, 17150 रुपये और 28450 रुपये मिलते। एनपीएस में कर्मियों द्वारा हर माह अपने वेतन का दस प्रतिशत शेयर डालने के बाद भी उन्हें रिटायरमेंट पर मामूली सी पेंशन मिलती है।


पीएफआरडीए में जमा है एनपीएस का पैसा

एनपीएस के तहत राज्य सरकारें, अपना और कर्मचारी की सैलरी का एक तय हिस्सा पेंशन फंडिंग रेगुलेटरी डेवलेपमेंट अथॉरिटी को देती हैं। इसे बाद में कर्मचारी को पेंशन के रूप में दिया जाता है। इसके तहत पेंशन फंडिंग एडजस्टमेंट के तहत राज्य सरकारें, केंद्र से अतिरिक्त कर्ज ले सकती हैं। यह अतिरिक्त कर्ज राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का तीन फीसदी तक हो सकता है। पुरानी पेंशन योजना को दोबारा से लागू करने वाली राज्य सरकारों और केंद्र के बीच ठन गई है।  


जिन गैर-भाजपा शासित राज्यों ने अपने कर्मियों को पुरानी पेंशन के दायरे में लाने की घोषणा की है, उन्हें 'एनपीएस' में जमा कर्मियों का पैसा वापस नहीं मिलेगा। केंद्र ने साफ कर दिया है कि यह पैसा 'पेंशन फंड एंड रेगुलेटरी अथारिटी' (पीएफआरडीए) के पास जमा है। नई पेंशन योजना 'एनपीएस' के अंतर्गत केंद्रीय मद में जमा यह पैसा राज्यों को नहीं दिया जा सकता। वह पैसा केवल उन कर्मचारियों के पास जाएगा, जो इसका योगदान कर रहे हैं।



गहलोत की अपील

लेकिन अब राजस्थान से कांग्रेस सरकार की विदाई हो चुकी है. जाते-जाते अशोक गहलोत ने आने वाली बीजेपी सरकार से OPS को जारी रखने रखने की अपील की है.वहीं छत्तीसगढ़ में भी OPS को कांग्रेस ने जोर-शोर से उठाया था, कांग्रेस पार्टी की महासचिव एवं स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी अपनी रैलियों में 'ओपीएस' के मुद्दे को जबर्दस्त तरीके से उठा रही थीं. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने 1 अप्रैल, 2022 से ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) को लागू करने की नोटिफिकेशन जारी किया था. सरकार लगातार इस मुद्दे पर बैठकें कर रही थीं. OPS लागू करने वाली राज्य सरकारें लगातार केंद्र से NPS में जमा उनके राज्यों के कर्मचारियों के पैसे मांग रहे थे.लेकिन केंद्र ने फंड देने से साफ इनकार कर दिया. जिसके बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी थी कि उसके पास फंसी राज्य के कर्मचारियों के पेंशन की 17 हजार 240 करोड़ रुपये की राशि को वे हर हाल में लेकर रहेंगे.

 



OPS को लेकर एक्सपर्ट की राय


दरअसल, OPS को लागू करना किसी भी राज्य के आसान नहीं रहने वाला है. इससे सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ जाएगा. यही नहीं, कानूनी तौर पर केंद्र से इजाजत की जरूरत होगी. फिलहाल कुछ गैर बीजेपी शासित राज्यों ने ओल्ड पेंशन स्कीम को बहाल करने का फैसला किया है. जिसमें राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब, झारखंड और हिमाचल प्रदेश अहम हैं. लेकिन अब राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार बनने जा रही है, तो क्या यहां OPS कानून को निरस्त कर दिया जाएगा. क्योंकि बीजेपी OPS के पक्ष में बिल्कुल नहीं है. 


यही नहीं, बाकी राज्यों में भी OPS दांव में सियासी पेंच फंस सकता है. एनपीएस का पैसा केंद्र सरकार के पास जमा है. भले ही वह पैसा कर्मियों का है, लेकिन बिना केंद्र की सहमति के उसे राज्य सरकार को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता. ओपीएस को अगर राज्य में कानूनी दर्जा मिल भी गया तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि किसी दूसरे दल की सरकार उस कानून को निरस्त नहीं करेगी. ऐसे में कानूनी दर्जे की खास अहमियत नहीं रह जाएगी. जिसका ताजा उदाहरण जल्द ही राजस्थान और छत्तीसगढ़ में देखने को मिलेगा.


RBI ने किया आगाह  

हाल के दिनों में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने OPS को लेकर एक स्टडी की है. आरबीआई की रिपोर्ट के हिसाब से अगर देश में एनपीएस की जगह ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू किया जाता है, तो सरकारी खजाने का बोझ 4.5 गुना बढ़ जाएगा. इसके कारण सरकारी खजाने पर पड़ने वाला बोझ भी बढ़कर 2060 तक जीडीपी का 0.9 फीसदी तक पहुंच सकता है. केंद्रीय बैंक के मुताबिक, ओपीएस को बहाल करने से राज्यों की वित्तीय हालत पर भी असर होगा और ये खराब हो सकती है.


सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के मुताबिक जिन राज्यों में पेंशन में योगदान के लिए वहां की सरकारें खर्च करती हैं. वह NPS लागू करने के समय यानी 2004 में उनके रिवेन्यू का 10 प्रतिशत था. जबकि 2020-21 में बढ़कर ये 25 फीसदी हो चुका है. अब जो 5 राज्य NPS से OPS पर लौटने का फैसला कर चुके हैं, उनका बोझ और बढ़ेगा.


भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी मासिक रिपोर्ट इकोरैप (अक्टूबर 2022) में कहा था कि अगर सभी राज्य OPS पर लौट जाते हैं, तो सरकारी खजाने का बोझ 31.04 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा. सिर्फ तीन राज्य छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान के सरकारी खजाने पर कुल 3 लाख करोड़ रुपये का बोझ आएगा.


योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक अहलूवालिया ने पुरानी पेंशन स्कीम को लेकर कहा था कि कुछ राज्य सरकारों द्वारा पुरानी पेंशन योजना को फिर से शुरू करना वित्तीय दिवालियापन की रेसिपी है.


Old Pension Scheme (OPS) है क्या? 

ओल्ड पेंशन स्कीम के तहत रिटायर्ड कर्मचारी को अनिवार्य पेंशन का अधिकार मिलता है. ये रिटायरमेंट के समय मिलने वाले मूल वेतन का 50 फीसदी होता है. यानी कर्मचारी जितनी बेसिक-पे पर अपनी नौकरी पूरी करके रिटायर होता है, उसका आधा हिस्सा उसे पेंशन के रूप में दे दिया जाता है.


Old Pension Scheme में रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी को वर्किंग एंप्लाई की तरह लगातार महंगाई भत्ता समेत अन्य भत्तों का लाभ भी मिलता है, मतलब अगर सरकार किसी भत्ते में इजाफा करती है, तो फिर इसके मुताबिक पेंशन में बढ़ोतरी देखने को मिलेगी. 


New Pension Scheme (OPS) है क्या? 

साल 2004 से लागू हुई नई पेंशन स्‍कीम (NPS) का निर्धारण कुल जमा राशि और निवेश पर आए रिटर्न के अनुसार होता है. इसमें कर्मचारी का योगदान उसकी बेसिक सैलरी और DA का 10 फीसदी कर्मचारियों को प्राप्त होता है. इतना ही योगदान राज्य सरकार भी देती है. 1 मई 2009 से एनपीएस स्कीम सभी के लिए लागू की गई.


पुरानी पेंशन योजना में कर्मचारी की सैलरी से कोई कटौती नहीं होती थी. NPS में कर्मचारियों की सैलरी से 10% की कटौती की जाती है. पुरानी पेंशन योजना में  GPF की सुविधा होती थी, लेकिन नई स्कीम में इसकी सुविधा नहीं है. पुरानी पेंशन स्कीम में रिटायरमेंट के समय की सैलरी की करीब आधी राशि पेंशन के रूप मिलती थी, जबकि नई पेंशन योजना में निश्चित पेंशन की कोई गारंटी नहीं है. क्योंकि पुरानी पेंशन एक सुरक्षित योजना है, जिसका भुगतान सरकारी खजाने से किया जाता है. वहीं, नई पेंशन योजना शेयर बाजार पर आधारित है, जिसमें बाजार की चाल के अनुसार भुगतान किया जाता है.

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