बीजेपी का नाम बदलने का मास्टर स्ट्रोक क्या सेक्युलर सिविल कोड से मिलेगा चुनावी लाभ
लोकसभा चुनावों में मिली हार के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव करने की कोशिश की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने भाषण में एक महत्वपूर्ण घोषणा की, जिसने भारतीय राजनीति में हलचल मचा दी। मोदी ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का नाम बदलकर “सेक्युलर सिविल कोड” रख दिया। यह कदम बीजेपी की रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जा रहा है, जो विपक्ष को एक नई चुनौती देने की दिशा में उठाया गया है।
नाम बदलने के इस कदम की राजनीतिक गहराई को समझना महत्वपूर्ण है। पिछले साल विपक्ष ने अपने गठबंधन का नाम "इंडिया" रखा था, जिसके बाद से सरकार ने "भारत" शब्द को बढ़ावा देना शुरू कर दिया। अब, मोदी सरकार ने यूसीसी को सेक्युलर सिविल कोड का नाम देकर एक नई राजनीतिक दिशा तय करने की कोशिश की है। इस नाम परिवर्तन के माध्यम से मोदी सरकार ने विपक्ष को एक नई चुनौती दी है, और यह माना जा रहा है कि यह बीजेपी के लिए आगामी विधानसभा चुनावों में एक महत्वपूर्ण बढ़त साबित हो सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी का यह कदम विपक्षी दलों पर एक स्पष्ट राजनीतिक हमला प्रतीत होता है, जिन्होंने हमेशा बीजेपी के यूसीसी एजेंडे की आलोचना की है। विशेष रूप से 1985 में सुप्रीम कोर्ट के शाहबानो मामले के फैसले के बाद, जब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलट दिया था, तब से बीजेपी ने यूसीसी की मांग को जोर-शोर से उठाया है। यह स्थिति दर्शाती है कि बीजेपी ने यूसीसी को राजनीतिक विवाद का एक प्रमुख मुद्दा बना दिया है।
मोदी के इस कदम को बीजेपी की रणनीतिक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है। यह न केवल विपक्ष के खिलाफ एक नई राजनीतिक मोर्चा खोलता है, बल्कि बीजेपी को भी एक नई दिशा प्रदान करता है। भारतीय राजनीति में नाम और ब्रांडिंग का महत्व बहुत अधिक होता है। "सेक्युलर सिविल कोड" का नाम देकर मोदी ने इस मुद्दे को एक नई पहचान देने की कोशिश की है, जिससे विपक्ष की आलोचना को कमजोर किया जा सके।
इस कदम का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इससे विपक्ष की स्थिति पर प्रभाव पड़ सकता है। मोदी सरकार जानती है कि यदि विपक्ष और लिबरल विचारधारा वाले लोग इस कानून का समर्थन करते हैं, तो यह बीजेपी की राजनीतिक फायदेमंद स्थिति को कमजोर कर सकता है। इसलिए, बीजेपी यह चाहती है कि विपक्ष इस नए नाम के खिलाफ विरोध करे, ताकि उसे राजनीतिक लाभ मिल सके।
वीर सांघवी ने एक बार लिखा था कि जो लोग नेहरू और आंबेडकर के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं, वे भी समान नागरिक संहिता के लिए इन दोनों नेताओं की अपील को नकारते हैं। रामचंद्र गुहा ने 2016 में लिखा था कि समान नागरिक संहिता का विरोध करने वाले वामपंथी बुद्धिजीवी समाजवादी और महिलावादी आंदोलनों की प्रगतिशील विरासत को नकार रहे हैं। गुहा का यह बयान उस समय की बौद्धिक बहस को दर्शाता है, जो अब वास्तविकता के धरातल पर उतर चुकी है।
मोदी सरकार ने अब तक कई महत्वपूर्ण एजेंडों को पूरा किया है, जैसे राम मंदिर और धारा 370, और अब केवल समान नागरिक संहिता को लागू करने का काम बाकी है। यह कदम एक महत्वपूर्ण लिंग-न्यायपूर्ण सुधार के रूप में देखा जा रहा है, जो संविधान सभा के प्रस्तावित सिद्धांतों के अनुरूप है। पंडित नेहरू और बीआर आंबेडकर जैसे प्रमुख नेताओं ने यूसीसी को लागू करने का समर्थन किया था, लेकिन यह कार्य अब तक पूरा नहीं हो पाया।
मोदी ने अपने भाषण में इस बात पर जोर दिया कि विवाह, परिवार और विरासत के नियमों को एक समान बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने इसे संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत सरकार की जिम्मेदारी बताया और कहा कि यह कार्य राजनीतिक कारणों से अब तक पूरा नहीं हो सका है। उनका उद्देश्य यह है कि वर्तमान संसद इस ऐतिहासिक जिम्मेदारी को पूरा करे और आंबेडकर के सपने को साकार करे। इससे महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा और संविधान के प्रावधानों को मान्यता मिलेगी।
विपक्ष की प्रतिक्रिया अभी तक मिश्रित रही है। कांग्रेस और अन्य दल इस मुद्दे पर खुलकर विरोध नहीं कर रहे हैं। कांग्रेस के नेताओं ने संविधान की महत्ता की बात की है और कहा है कि संविधान जो अनुमति देगा, वही होगा। बीएसपी प्रमुख मायावती ने भी संविधान की महत्ता को प्रमुखता दी है। इस तरह, विपक्ष ने इस मुद्दे पर सीधे तौर पर विरोध नहीं किया है, लेकिन इसे व्यापक समर्थन देने की स्थिति में भी नहीं है।
बीजेपी ने राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए एक प्रभावी कदम उठाया है। भले ही नाम बदलने से सेक्युलर सिविल कोड को व्यापक समर्थन मिलना मुश्किल हो, फिर भी यह कदम भारतीय राजनीति के परिदृश्य को एक नई दिशा देने की क्षमता रखता है। मोदी सरकार का यह कदम आगामी चुनावों के संदर्भ में एक नई राजनीतिक दिशा तय करने का प्रयास है, और इसके प्रभाव से भारतीय राजनीति की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव हो सकते हैं।
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